Two Important Suffixes In Sanskrit Grammar | क्त्वा और ल्यप्
संस्कृत में प्रत्यय
क्त्वा और ल्यप् (परिभाषा और उदाहरण)
1. क्त्वा और ल्यप् प्रत्यय में क्या अन्तर है ?
संस्कृत में धातुओं (क्रियाओं) के बाद लगने वाले प्रत्ययों को ‘कृत्’ प्रत्यय कहा जाता है। ‘क्त्वा’ और ‘ल्यप्’ भी कृत् प्रत्यय हैं, अतः संस्कृत की धातुओं के बाद इनका प्रयोग किया जाता है। ‘कर’ या ‘करके’ अर्थ में क्त्वा और ल्यप् प्रत्यय होते हैं। धातु से पहले यदि उपसर्ग न हो तो ‘क्त्वा’ प्रत्यय होता है और अगर धातु से पहले कोई उपसर्ग (प्र, सम्, आ, उप, नि, वि आदि) हो तो ‘ल्यप्’ प्रत्यय होता है।
जैसे- संस्कृत की एक धातु है; ‘गम्‘। इसके पहले कोई उपसर्ग नहीं है, अतः इसके बाद ‘क्त्वा’ प्रत्यय का प्रयोग किया जा सकता है, पर यदि ‘आ+गम्‘ धातु हो तो ‘क्त्वा’ का नहीं, बल्कि ‘ल्यप्’ प्रत्यय का प्रयोग होगा। ‘क्त्वा’ का ‘त्वा’ और ‘ल्यप्’ का ‘य’ शेष रहता है।
2. क्त्वा एवं ल्यप् प्रत्यय लगाने पर अर्थ-परिवर्तन
‘समानकर्तृकयोः पूर्वकाले’। ३।४।२१।
‘पढकर’, ‘लिखकर’, ‘खाकर’, ‘पीकर’ आदि पूर्वकालिक क्रियाओं का अनुवाद संस्कृत में ‘क्त्वा’ (त्वा) प्रत्ययान्त शब्दों से किया जाता है। ऐसे स्थलों पर एक क्रिया के आरम्भ होने पर दूसरी क्रिया आरम्भ हो जाती है, अतः इसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं (पूर्वकालिक अर्थात् पहले प्रारम्भ होने वाली क्रिया)। परन्तु पूर्वकालिक क्रिया और उसके बाद आरम्भ होने वाली क्रिया का एक ही कर्ता होना चाहिये। जैसे- सः पुस्तकं पठित्वा लिखति। (वह पुस्तक पढ़कर लिखता है) यहाँ ‘पठ्’ और ‘लिख्’ दोनों क्रियाओं का कर्ता एक ही है-‘सः’। तथा पढ़ने की क्रिया आरम्भ होने के बाद लिखने की क्रिया आरम्भ हो रही है। अतः पूर्वकालिक क्रिया ‘पठ्’ में क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग हुआ है।
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Click here for quiz3. ल्यप् प्रत्यय कब होता है ?
‘समासेऽनञ्पूर्वेक्त्वो ल्यप्’। ७।१।३७।
अगर धातु (क्रिया) से पहले कोई उपसर्ग लगा हो तो ‘क्त्वा’ (त्वा) के स्थान पर ‘ल्यप्’ प्रत्यय होता है, पर ‘नञ्’(अ) उपसर्ग होने पर नहीं। जैसे- भू+क्त्वा=भूत्वा, सम्+भू+ल्यप्=सम्भूय, अ+भू+क्त्वा=अभूत्वा।
‘क्त्वा’ प्रत्यय का ‘त्वा’ और ‘ल्यप्’ प्रत्यय का ‘य’ शेष बचता है।
4. ल्यप् के स्थान पर ‘त्य’
‘ह्रस्वस्य पिति कृति तुक्’। ६।१।७१।
‘ल्यप्’ प्रत्यय का शेष ‘य’ यदि ह्रस्व स्वर के बाद आता है, तो इसके पहले ‘त्’ लगाकर इसका रूप ‘त्य’ हो जाता है, जैसे- सम्+चि+ल्यप्=संचित्य। आगत्य, संश्रुत्य, निश्चित्य, विजित्य इत्यादि।
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5. क्त्वा और ल्यप् प्रत्यय के उदाहरण:-
धातु | क्त्वा प्रत्यय | ल्यप् प्रत्यय |
भू /अस् (होना) | भू+क्त्वा=भूत्वा (होकर) | सम्+भू+ल्यप् = सम्भूय |
कृ (करना) | कृ+क्त्वा=कृत्वा (करके) | उप+कृ+ल्यप् = उपकृत्य |
पठ् (पढ़ना) | पठ्+क्त्वा=पठित्वा (पढ़कर) | सम्+पठ्+ल्यप् = सम्पठ्य |
लिख् (लिखना) | लिख्+क्त्वा=लिखित्वा (लिखकर) | वि+लिख्+ल्यप् = विलिख्य |
हस् (हँसना) | हस्+क्त्वा= हसित्वा (हँसकर) | वि+हस्+ल्यप् = विहस्य |
पत् (गिरना) | पत्+क्त्वा= पतित्वा (गिरकर) | नि+पत्+ल्यप् = निपत्य |
पच् (पकाना) | पच्+क्त्वा= पक्त्वा (पकाकर) | सम्+पच्+ल्यप् = सम्पच्य |
खाद् (खाना) | खाद्+क्त्वा= खादित्वा (खाकर) | आ+खाद्+ल्यप् = आखाद्य |
धाव् (दौड़ना) | धाव्+क्त्वा= धावित्वा (दौड़कर) | प्र+धाव्+ल्यप् = प्रधाव्य |
क्रीड् (खेलना) | क्रीड्+क्त्वा= क्रीडित्वा (खेलकर) | प्र+क्रीड्+ल्यप् = प्रक्रीड्य |
कूर्द् (कूदना) | कूर्द्+क्त्वा= कूर्दित्वा (कूदकर) | प्र+कूर्द्+ल्यप् = प्रकूर्द्य |
भ्रम् (घूमना) | भ्रम्+क्त्वा= भ्रमित्वा (घूमकर) | सम्+भ्रम्+ल्यप् = सम्भ्रम्य |
रक्ष् (बचाना) | रक्ष्+क्त्वा= रक्षित्वा (बचाकर) | सम्+रक्ष्+ल्यप् = संरक्ष्य |
स्था (खड़े होना) | स्था+क्त्वा= स्थित्वा (खड़े रहकर) | प्र+स्था+ल्यप् = प्रस्थाय |
वद् (बोलना) | वद्+क्त्वा= उदित्वा (बोलकर) | अनु+वद्+ल्यप् = अनूद्य |
गम् (जाना) | गम्+क्त्वा= गत्वा (जाकर) | आ+गम्+ल्यप् = आगम्य/आगत्य |
नम् (झुकना/नमस्कार करना) | नत्वा (झुककर/नमस्कार करके) | प्र+नम्+ल्यप् = प्रणम्य |
श्रु (सुनना) | श्रु+क्त्वा= श्रुत्वा (सुनकर) | सम्+श्रु+त्य = संश्रुत्य |
जि (जीतना) | जि+क्त्वा= जित्वा (जीतकर) | वि+जि+ल्यप् = विजित्य |
नी (ले जाना) | नी+क्त्वा= नीत्वा (ले जाकर) | आ+नी+ल्यप् = आनीय |
स्मृ (याद करना) | स्मृ+क्त्वा= स्मृत्वा (याद करके) | वि+स्मृ+ल्यप् = विस्मृत्य |
दृश् (देखना) | दृश्+क्त्वा= दृष्ट्वा (देखकर) | सम्+दृश्+ल्यप् = संदृश्य |
नश् (नष्ट होना) | नश्+क्त्वा= नष्ट्वा (नष्ट होकर) | वि+नश्+ल्यप् = विनश्य |
आप् (पाना) | आप्त्वा (पाकर) | प्र+आप्+ल्यप् = प्राप्य |
लभ् (पाना) | लब्ध्वा (पाकर) | उप्+लभ्+ल्यप् = उपलभ्य |
क्री (खरीदना) | क्रीत्वा (खरीदकर) | वि+क्री+ल्यप् = विक्रीय |
भी (डरना) | भीत्वा (डरकर) | वि+भी+ल्यप् = विभीय |
क्षिप् (फेंकना) | क्षिप्त्वा (फेंककर) | प्र+क्षिप्+ल्यप् = प्रक्षिप्य |
ग्रह् (लेना) | गृहीत्वा (लेकर) | सम्+ग्रह्+ल्यप् = संगृह्य |
घ्रा (सूँघना) | घ्रात्वा (सूँघकर) | आ+घ्रा+ल्यप् = आघ्राय |
दा (देना) | दत्त्वा (देकर) | आ+दा+ल्यप् = आदाय |
ज्ञा (जानना) | ज्ञात्वा (जानकर) | वि+ज्ञा+ल्यप् = विज्ञाय |
पा (पीना) | पीत्वा (पीकर) | नि+पा+ल्यप् = निपाय |
ईक्ष् (देखना) | ईक्षित्वा (देखकर) | सम्+ईक्ष्+ल्यप् = समीक्ष्य |
त्यज् (छोड़ना) | त्यक्त्वा (छोड़कर) | परि+त्यज्+ल्यप् = परित्यज्य |
मुच् (छोड़ना) | मुक्त्वा (छोड़कर) | वि+मुच्+ल्यप् = विमुच्य |
भुज् (खाना) | भुक्त्वा (खाकर) | उप+भुज्+ल्यप् = उपभुज्य |
प्रच्छ् (पूछना) | पृष्ट्वा (पूछकर) | सम्+प्रच्छ्+ल्यप् = सम्पृच्छ्य |
चिन्त् (सोचना) | चिन्तयित्वा (सोचकर) | वि+चिन्त्+ल्यप् = विचिन्त्य |
भक्ष् (खाना) | भक्षयित्वा (खाकर) | सम्+भक्ष्+ल्यप् = सम्भक्ष्य |
रच् (बनाना) | रचयित्वा (बनाकर) | वि+रच्+ल्यप् = विरचय्य |
कथ् (कहना) | कथयित्वा (कहकर) | प्र+कथ्+ल्यप् = प्रकथ्य |
हृ (ले जाना) | हृत्वा (ले जाकर) | आ+हृ+ल्यप् = आहृत्य |
दुह् (दुहना) | दुग्ध्वा (दोहकर) | सम्+दुह्+ल्यप् = संदुह्य |
नृत् (नाचना) | नर्तित्वा (नाचकर) | प्र+नृत्+ल्यप् = प्रनृत्य |
ब्रू (बोलना) | उक्त्वा (बोलकर) | प्र+ब्रू+ल्यप् = प्रोच्य |
मन् (मानना) | मत्वा (मानकर) | अनु+मन्+ल्यप् = अनुमत्य |
वस् (रहना) | उषित्वा (रहकर) | उप+वस्+ल्यप् = उपोत्य |
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