Sandhi
सन्धि किसे कहते हैं
इस लेख को पढ़ने से पहले आप वर्णों के बारे में तो अच्छी तरह से जान ही चुके होंगे । भाषा की सबसे छोटी ईकाई वर्ण कहलाती है, मुख्यतः ये वर्ण दो प्रकार के होते हैं- स्वर और व्यंजन। इन्हीं वर्णों से मिलकर शब्द बनते हैं।
जब कभी कोई दो वर्ण ज़्यादा समीप आ जाने की वजह से आपस में मिल जाते हैं तो इसे वर्णों की सन्धि (जोड़) कहा जाता है। सन्धि करने पर उन वर्णों में कुछ परिवर्तन आ जाता है।
सन्धि की परिभाषा :- दो वर्णों के मेल को सन्धि कहते हैं।
महर्षि पाणिनि के अनुसार, “पर: सन्निकर्ष: संहिता” अर्थात् वर्णों की अत्यन्त सामीप्यता (नज़दीकी) को सन्धि कहते हैं।
सरल शब्दों में, दो वर्णों के मिलने से पैदा हुये बदलाव को सन्धि कहते हैं ।
सन्धि के भेद :- 1. स्वर सन्धि, 2. व्यंजन सन्धि, 3. विसर्ग सन्धि
सन्धि होने वाले दो वर्णों में पहला वर्ण यदि स्वर हो तो उसे ‘स्वर सन्धि’ कहा जाता है । पहला वर्ण यदि व्यंजन हो तो ‘व्यंजन सन्धि’ और पहला वर्ण यदि विसर्ग हो तो उसे ‘विसर्ग सन्धि’ कहा जाता है ।
स्वर सन्धि
परिभाषा :- दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (बदलाव) को ‘स्वर सन्धि’ कहते हैं ।
स्वर संधि के भेद
स्वर संधि के मुख्य रूप से 5 भेद होते हैं:-
1.दीर्घ, 2. गुण, 3. वृद्धि, 4. यण्, 5. अयादि
इनके अलावा, पूर्वरूप, पररूप और प्रकृति भाव – ये तीन अवान्तर भेद भी हैं।
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दीर्घ सन्धि
यदि पूर्व पदान्त हृस्व / दीर्घ अ, इ, उ, ऋ के बाद कोई सजातीय (समान) वर्ण हो तो पहले और बाद वाले स्वरवर्णों के स्थान पर दीर्घ वर्ण आ , ई , ऊ , ऋ हो जाता है । जैसे – देव+आज्ञा, यहाँ पहले शब्द ‘देव’ में अन्तिम स्वर है – ‘अ’ और उसके तुरन्त बाद दीर्घ ‘आ’ है । तो यहाँ इन दोनों ‘अ’,‘आ’ को मिलाकर ‘आ’ लिखा जायेगा – देवाज्ञा ।
देखें और समझें :-
देव आज्ञा
देव् अ आ ज्ञा
देव् आ ज्ञा
देवाज्ञा
याद रखें –
अ / आ के बाद अ / आ हो तो – आ
उ / ऊ के बाद उ / ऊ हो तो – ऊ
इ / ई के बाद इ / ई हो तो – ई
ऋ / ॠ के बाद ऋ / ॠ हो तो – ॠ
दीर्घ सन्धि के उदाहरण :-
दैत्य + अरि: = दैत्यारि: (अ+अ=आ)
वेद + अन्त = वेदान्त (अ+अ=आ)
धर्म + अधर्म = धर्माधर्म (अ+अ=आ)
प्रधान + आचार्य: = प्रधानाचार्य: (अ+आ=आ)
देव + आगमन = देवागमन (अ+आ=आ)
सत्य + आग्रह = सत्याग्रह (अ+आ=आ)
कवि + इन्द्र: = कवीन्द्र: (इ+इ=ई)
रवि + इन्द्र: = रवीन्द्र: (इ+इ=ई)
अति + इव = अतीव (इ+इ=ई)
लघु + उत्तरम् = लघूत्तरम् (उ+उ=ऊ)
साधु + उक्तम् = साधूक्तम् (उ+उ=ऊ)
गुरु + उपदेश: = गुरूपदेश: (उ+उ=ऊ)
पितृ + ऋकार: = पितॄकार: (ऋ+ऋ=ॠ)
मातृ + ऋणम् = मातॄणम् (ऋ+ऋ=ॠ)
क्विज़ के माध्यम से दीर्घ सन्धि का अभ्यास करें-
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गुण सन्धि
यदि “अ / आ” के बाद ह्रस्व या दीर्घ “इ , उ , ऋ , लृ” हो तो अ / आ और उसके बाद वाले वर्ण के स्थान पर क्रमशः “ए , ओ , अर् , अल्” हो जाता है । जैसे – हर+इन्द्रः, यहाँ पहले शब्द ‘हर’ में अन्तिम स्वर है – ‘अ’ और उसके तुरन्त बाद ‘इ’ है । तो यहाँ इन दोनों स्वरों ‘अ’,‘इ’ को मिलाकर ‘ए’ लिखा जायेगा – हरेन्द्रः ।
देखें और समझें :-
हर इन्द्रः
हर् अ इ न्द्रः
हर् ए न्द्रः
हरेन्द्रः
याद रखें –
अ / आ के बाद इ / ई हो तो – ए
अ / आ के बाद उ / ऊ हो तो – ओ
अ / आ के बाद ऋ / ॠ हो तो – अर्
अ / आ के बाद लृ / लॄ हो तो – अल्
गुण सन्धि के उदाहरण :-
धन + इन्द्र: = धनेन्द्र: (अ+इ=ए)
पुष्प + इन्द्र: = पुष्पेन्द्र: (अ+इ=ए)
गज + इन्द्र: = गजेन्द्र: (अ+इ=ए)
सूर्य + उदय: = सूर्योदय: (अ+उ=ओ)
महा + उत्सव: = महोत्सव: (आ+उ=ओ)
हित + उपदेश: = हितोपदेश: (अ+उ=ओ)
गंगा + उदकम् = गंगोदकम् (आ+उ=ओ)
सप्त + ऋषि: = सप्तर्षि: (अ+ऋ=अर्)
महा + ऋषि: = महर्षि: (आ+ऋ=अर्)
नव + लृकार: = नवल्कार: (अ+लृ=अल्)
तव + लृकार: = तवल्कार: (अ+लृ=अल्)
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वृद्धि सन्धि
यदि ‘अ या आ’ के बाद ‘ए/ऐ’, ‘ओ/औ’ हो तो अ/आ और उसके बाद वाले वर्ण के स्थान पर क्रमशः “ऐ” और “औ” हो जाता है । जैसे – सदा+एव, यहाँ पहले शब्द ‘सदा’ में अन्तिम स्वर है – ‘आ’ और उसके तुरन्त बाद स्वर ‘ए’ है । तो यहाँ इन दोनों स्वरों ‘आ’,‘ए’ को मिलाकर ‘ऐ’ लिखा जायेगा – सदैव ।
देखें और समझें :-
सदा एव
सद् आ ए व
सद् ऐ व
सदैव
याद रखें –
अ / आ के बाद ए / ऐ हो तो – ऐ
अ / आ के बाद ओ / औ हो तो – औ
वृद्धि सन्धि के उदाहरण:
अत्र + एक: = अत्रैक: (अ+ए=ऐ)
एक + एक = एकैक: (अ+ए=ऐ)
अद्य + एव = अद्यैव (अ+ए=ऐ)
जन + एकता = जनैकता (अ+ए=ऐ)
तत्र + एकता = तत्रैकता (अ+ए=ऐ)
मत + ऐक्य: = मतैक्य: (अ+ऐ=ऐ)
देव + ऐश्वर्यम् = देवैश्वर्यम् (अ+ऐ=ऐ)
तदा + एव = तदैव: (आ+ए=ऐ)
महा + ऐश्वर्यम् = महैश्वर्यम् (आ+ऐ=ऐ)
तंदुल + ओदनम् = तण्डुलौदनम् (अ+ओ=औ)
देव + ओदार्यम् = देवौदार्यम् (अ+ओ=औ)
तव + ओष्ठ: = तवौष्ठम् (अ+ओ=औ)
मम + औषधि: = ममौषधि: (अ+औ=औ)
गंगा + ओघ: = गंगौघ: (आ+ओ=औ)
महा + औषधि: = महौषधि: (आ+औ=औ)
यथा + औचित्यम् = यथौचित्यम् (आ+औ=औ)
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यण् सन्धि
यदि हृस्व / दीर्घ इ , उ , ऋ , लृ के बाद कोई असमान अर्थात् भिन्न स्वर हो तो हृस्व / दीर्घ इ , उ , ऋ , लृ के स्थान पर क्रमशः य् , व्, र् , ल् आता है । जैसे – यदि+अपि, यहाँ पहले शब्द ‘यदि’ में अन्तिम स्वर है – ‘इ’ और उसके तुरन्त बाद इ से भिन्न स्वर ‘अ’ है । तो यहाँ ‘इ’ को बदलकर उसकी जगह ‘य्’ लिखा जायेगा – यद्यपि ।
देखें और समझें :-
यदि अपि
यद् इ अपि
यद् य् अपि
यद् यपि
यद्यपि
याद रखें –
इ/ई के बाद इ/ई को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो – ‘इ/ई’ को ‘य्’
उ/ऊ के बाद उ/ऊ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो – ‘उ/ऊ’ को ‘व्’
ऋ/ॠ के बाद ऋ/ॠ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो – ‘ऋ/ॠ’ को ‘र्’
लृ/लॄ के बाद लृ/लॄ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो – ‘लृ/लॄ’ को ‘ल्’
यण् सन्धि के उदाहरण :-
यदि + अपि = यद्यपि (इ+अ = य)
इति + आदि = इत्यादि (इ+आ = या)
प्रति + आगच्छति = प्रत्यागच्छति (इ+आ = या)
अपि + एवम् = अप्येवम् (इ+ए = ये)
प्रति + एकम् = प्रत्येकम् (इ+ए = ये)
देवी + अपि = देव्यपि (ई+अ = य)
अनु + अर्थ: = अन्वर्थ: (उ+अ = व)
सु + आगतम् = स्वागतम् (उ+आ = वा)
धेनु + ऐक्यम् = धेन्वैक्यम् (उ+ऐ = वै)
वधू + आज्ञा = वध्वाज्ञा (ऊ+आ = वा)
मधु + अरि: = मध्वरि: (उ+अ = व)
वधू + आदेश: = वध्वादेश: (ऊ+आ = वा)
पितृ + अर्थम् = पित्रर्थम् (ऋ+अ = र)
मातृ + आदेश: = मात्रादेश: (ऋ+आ = रा)
भ्रातृ + आज्ञा = भ्रात्राज्ञा (ऋ+आ = रा)
पितृ + आदेश: = पित्रादेश: (ऋ+आ = रा)
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अयादि सन्धि
यदि ‘ए, ऐ, ओ, औ’ के बाद कोई भी स्वर हो तो ‘ए को अय्’, ‘ऐ को आय्’, ‘ओ को अव्’ और ‘औ को आव्’ हो जाता है । अर्थात्, । जैसे – भो+अनम्, यहाँ पहले शब्द ‘भो’ में अन्तिम स्वर है – ‘ओ’ और उसके तुरन्त बाद स्वर है – ‘अ’ । तो यहाँ ‘ओ’ को बदलकर उसकी जगह ‘अव्’ लिखा जायेगा –भवनम् ।
देखें और समझें :-
भो अनम्
भ् ओ अनम्
भ् अव् अनम्
भव् अनम्
भवनम्
याद रखें –
‘ए’ के बाद कोई भी स्वर हो तो – ‘ए’ को ‘अय्’
‘ऐ’ के बाद कोई भी स्वर हो तो – ‘ऐ’ को ‘आय्’
‘ओ’ के बाद कोई भी स्वर हो तो – ‘ओ’ को ‘अव्’
‘औ’ के बाद कोई भी स्वर हो तो – ‘औ’ को ‘आव्’
अयादि सन्धि के उदाहरण :-
शे + अनम् = शयनम् (ए+अ = अय)
ने + अति = नयति (ए+अ = अय)
मुने + ए = मुनये (ए+ए = अये)
हरे + ए = हरये (ए+ए = अये)
नै + अकः = नायक: (ऐ+अ = आय)
गै + अकः = गायक: (ऐ+अ = आय)
पो + अनः = पवनः (ओ+अ = अव)
पो + इत्र: = पवित्र: (ओ+इ = अवि)
विष्णो + ए = विष्णवे (ओ+ए = अवे)
पौ + अकः = पावकः (औ+अ = आव)
द्वौ + अपि = द्वावपि (औ+अ = आव)
असौ + अयम् = असावयम् (औ+अ = आव)
नौ + इक: = नाविक: (औ+इ = आवि)
भौ + उकः = भावुकः (औ+उ = आवु)
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