भाषा और लिपि
आसान शब्दों में कहा जाए तो ध्वनियों को बोलना भाषा है, जबकि उन ध्वनियों को लिखने का तरीका है- लिपि।
चलिए ज़रा इसे और बेहतर समझते हैं,
यह तो हम सब जानते ही हैं कि अपने मन के विचारों को, अपनी बातों को दूसरों तक पहुँचाने के लिये हम किसी न किसी भाषा का सहारा लेते हैं, चाहे वह भाषा सांकेतिक (Sign language) ही क्यों न हो। किसी भी भाषा में विभिन्न ध्वनियों (आवाज़) को मुँह से निकाला जाता है, जहाँ एक बोलने वाला होता है और दूसरा उन ध्वनियों को सुनने वाला।
लिपि की ज़रूरत और उसके प्रयोग
अब ज़रा कल्पना करें कि कोई व्यक्ति आपसे इतना दूर है कि उस तक आपकी आवाज़ नहीं पहुँच सकती तो आप क्या करेंगे? तब उस तक अपना सन्देश पहुँचाने के लिए आपको वे ध्वनियाँ लिखकर पहुँचानी होंगी। इन ध्वनियों को कागज़ में उतारने के लिए हम कुछ संकेतचिह्नों (symbols) का सहारा लेंगे। ध्वनियों (आवाज़ों) को लिखने का तरीका हर लिपि में अलग हो सकता है, जैसे ‘अ’ की ध्वनि को लिखने के लिए देवनागरी में ‘अ’, रोमन में ‘A’ और गुरमुखी में ‘ਅ’ लिखा जायेगा। इसलिये हर भाषा के लिए लिपि अलग हो सकती है। किन्हीं दो-तीन भाषाओं की एक लिपि भी हो सकती है, यानी उन भाषाओं की ध्वनियों को लिखने का तरीका एकसमान हो सकता है; जैसे, संस्कृत, हिन्दी, मराठी और नेपाली। इसका अर्थ यह होगा कि आप यदि देवनागरी लिपि के चिह्नों (वर्णों) को पढ़ना जानते हैं तो आप इन सभी भाषाओं को पढ़ सकते हैं। (ध्यान रहे, यहाँ केवल पढ़ने की बात हो रही है। लिपि एकसमान होने से आप इन सभी भाषाओं को पढ़ तो सकते हैं पर समझ तभी पाएँगे जब उस भाषा का आपको ज्ञान हो।)
अब ज़रा सोचें, क्या किसी लिपि में किसी दूसरी भाषा को लिखा जा सकता है? जबकि हम यह जान चुके हैं कि हर भाषा की अपनी एक लिपि होती है, जिस लिपि में उस भाषा को लिखा जाता है। फिर भी, kya yah mumkin hai ?
अगर आपका ज़वाब हाँ में है, तो आप बिलकुल सही हैं। लिपि ध्वनियों को लिखने का तरीका है और किसी भी भाषा की ध्वनि को आप अपनी लिपि में लिख सकते हैं, बशर्ते आपकी लिपि में उस भाषा की ध्वनियों को लिखने के लिए सारे चिह्न हों।
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